कोरोना काल में खून के रिश्ते छोटे पड़ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में कोरोना से होने वाली मौतों के चलते लोग अपने परिजनों के शवों को सड़कों, अस्पतालों और श्मशान में बिना अंतिम क्रिया के छोड़ कर जा रहे हैं। ऐसे में मृतकों की अंतिम क्रिया के लिए अपने उपलब्ध न हो पाने पर पुलिस और अन्य लोग मदद के लिए आ रहे हैं। पिछले कई दिनों से दिल्ली में लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें पुलिस और एनजीओ में कार्यरत लोगों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं।

बेटी पिता को अस्पताल में छोड़ गई
कड़कड़डूमा के डॉ. हेडगेवार आरोग्य अस्पताल से 23 अप्रैल को गोविंदपुरी थाना पुलिस को सूचना दी गई कि उनके यहां भर्ती 62 वर्ष के अशोक कुमार की मौत हो गई है। उन्हें किसी ने बेहोशी हालत में भर्ती किया था, लेकिन अब उनके साथ कोई नहीं है। उनके परिजन तुगलकाबाद में रहते हैं, जो उन्होंने भर्ती के समय पता लिखाया था। पुलिस टीम अस्पताल द्वारा दिए पते पर गई, लेकिन वहां कोई नहीं था। जांच में सामने आया कि अशोक को उनकी बेटी ने भर्ती किया था और उसने पता गलत लिखाया था। पुलिस उनकी बेटी को नहीं ढूंढ पाई। पुलिस की जांच में सामने आया कि मृतक एक सुरक्षाकर्मी था। घर वालों का पता नहीं लगने पर पुलिस ने सराए काले खां स्थित श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया।

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