अन्धेरे में शराबियों के छलकते है जाम, कॉलेज छात्र/छात्राऐं हैं परेशान
झालावाड़ 18 अगस्त। झालावाड़ जिले की ऑन – बान – शान झालावाड़ गढ़ बिल्डिंग, मिनी सचिवालय की इमारत के बाद एवं झालावाड़ मेडिकल कॉलेज है। जहां आपात सेवा के कारण मेडिकल कॉलेज के एस.आर.जी. अस्पताल एवं श्रीमति हीरा बां कुंवर जनाना अस्पताल की जरूरत आमजन एवं बीमारों के लिए 24 घण्टे रहती है। ल्ेकिन अस्पतालों एवं मेडिकल कॉलेज का प्रशासन आमजन की सुविधाओं से बेखबर है क्योंकि सीटी फोर लेन से लेकर अस्पतालों की इमारतों तक कहीं भी कोई एस.आर.जी. अस्पताल सूचक कोई साईन बोडऱ् लगा हुआ नहीं है और ना ही श्रीमति हीरा बां कुंवर जनाना अस्पताल को इंगित करता कोई साईन बोडऱ् लगाया हुआ है। ऐसा भी नहीं है इस अस्पताल के रखरखाव के लिए बजट में राज्य सरकार कोई कंजूसी कर रही हो बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमति वसुन्धरा राजे के स्वप्नों का यह मेडिकल कॉलेज जिसके दोनों अस्पतालों की भव्य इमारतों के सामने खूबसूरत गाडऱ्न एवं लॉन है पर यह पता लगाना अनजान आदमी के लिए नामुमकिन है कि यह इमारत है क्या ? रात्रि काली में तो पूरा कैंम्पस गहन अंधकार में डूबा रहता है। इतने बड़े मेडिकल कॉलेज के दोनों अस्पताल परिसरों में कोई सुविधा जनक रोशनी व्यवस्था नहीं है। सम्पूर्ण परिसर में मुख्य द्वार से लेकर मेडिकल कॉलेज के अन्तिम छोर तक कोई सड़क पर रोशनी करने वाला बल्ब या सोडिय़म लेम्प जलता दिखाई नहीं देता है। अस्पताल के सामने फैले विशाल गाडऱ्न वाले हिस्से में भी कोई भी रोशनी की व्यवस्था नहीं है। अस्पतालों के अन्दरूनी हिस्से अर्थात इमरजेंसी, वाडऱ्, बरामदों एवं ऑपरेशन डियेटर को छोड़ दिया जाये तो सम्पूर्ण बाहृ परिसर में अंधेरा पसरा रहता है। जिससे अस्पताल में आने वाले रोगियों एवं उनके तीमारदारों को बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है। बात यहीं नहीं रूकती है मेडिकल कॉलेज जहां पर गल्र्स एवं ब्वॉयज हॉस्टल है वहां पर भी सम्पूर्ण परिसर में अन्धेरा पसरा रहता है कहीं भी कोई बल्ब नहीं जलता है। जिससे मेडिकल कॉलेज परिसर में आने जाने में स्टूडेंटों को काफी परेशानी होती है। कई बार तो मेडिकल कॉलेज के अन्दर जाने वाले रास्तों के दोनों ओर अन्दर परिसर में कुछ आसामाजिक तत्वों का जमावड़ा बना रहता है। जो रात के समय अंधेरे का फायदा उठाकर आसामाजिक गतिविधियों को अंजाम देते है। वहीं अंधकार के चलते मेडिकल कॉलेज परिसर में आसामजिक तत्वों के जमा छलकते है और शराबियों के लिए यह मेडिकल कॉलेज एक सुरक्षित जगह साबित होता है। शराबी शराब पीने के बाद खाली बोतलें भी वहीं फेंककर चले जाते है। जिससे मेडिकल कॉलेज परिसर में बोतलों के ढेर लगे हुए है। रास्ते के साईड़ों में बैठकर आसामजिक तत्व मदिरा पान करते दिखाई देते है जिससे मेडिकल कॉलेज के छात्र/छात्राओं को आने जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। लेकिन उन्हें रोकने वाला यहां कोई दिखाई नहीं देता है। इस अंधकार से इस अस्पताल में आने वाले मरीज, तिमारदारों के साथ कितना सुरक्षित होते है, इसका अन्दाजा लगाना बेहद मुश्किल है। हालात यह हो चले है कि एस.आर.जी. अस्पताल पर जो नाम लिखा था वह मिट गया है। वहीं जनाना अस्पताल का नाम भी अधूरा ही रह गया है। जिसमें सिर्फ श्रीमति हीरा बां कुवर महि…. ही लिखा रह गया है। बावजूद इसके इन अस्पतालों के नामों के रखरखाव पर कोई किसी का ध्यान नहीं है। सूत्रों से पता चला है कि कर्नल के.के. शर्मा को जब से इस अस्पताल से हटाया है तब से ही धीरे-धीरे रोशनी व्यवस्था खराब होती गई और ऐसे अंधकारमय हालात इस अस्पताल के बनें गये है। मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. दीपक गुप्ता को यह अंधेरा अब तक क्यों नहीं दिखाई दे रहा है। अस्पताल की रोशनी व्यवस्था पर हर माह लाखों रूपया खर्चा किया जाता है बावजूद इसके अस्पताल का सम्पूर्ण परिसर अंधकार में डूबा रहता है।

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