विजयदशमी पर मंगलवार रात को ही देश भर में लाखों रावण व उसके कुनबे के पुतलों को आग लगाकर दहन कर दिया गया,और कुछ देर बाद मौके पर लाखों करोड़ों रावण राख में बदल गए। लेकिन रावण का एक कुनबा ऐसा भी है जिसे जलाया ही नहीं गया और वह आज भी मेला मैदान पर अडिग खड़ा है। रावण के पुतले और उसके कुंनबे को बनाया तो 183 साल पहले था, लेकिन उसे जलाया आज तक नहीं गया। हम बात कर रहे हैं झालरापाटन की,यहां के मेला मैदान में रावण अपने परिवार जनों के साथ 183 साल से अडिग खड़ा है। 1840 में झालावाड़ के पहले राजा झाला मदन सिंह ने पत्थर और मिट्टी से रावण के कुनबे का निर्माण करवाया था। उस समय से आज तक रावण का कुनबा जैसा था वैसा ही खड़ा है। हर साल इसे रंग रोगन कर नया कर दिया जाता है।
रावण दहन की अलग परंपरा-
1938 कोटा से अलग होकर झालावाड़ रियासत बनी थी। यहां के पहले राजा झाला मदन सिंह ऐसा कुछ करना चाहते थे ताकि इतिहास उनको याद रखें। उन्होंने झालावाड़ की राजधानी झालरापाटन को बनाया। 1940 में पहली बार झालरापाटन में ही दशहरा महोत्सव मनाया गया। दशहरे से ठीक पहले रावण के कुनबे के पुतलों का निर्माण करवाया गया। पहले दशहरे पर यहां रावण दहन की अलग परंपरा की शुरूआत हुई। रावण की नाभि की जगह एक बड़ा आला बनाया गया, इसमें लालरंग से भरी मटकी रखी गई। झाला मदन सिंह द्वारिकाधीश मंदिर से राम के वेश में हाथी पर सवार होकर आए। और कमान से तीर चला कर मटकी को फोड़ा, मटकी फूटते ही ऐसा लगा जैसे मानो रावण की नाभि से रक्त बह रहा हो। तब से झालरापाटन में रावण दहन की यही परंपरा चली आ रही है। 1943 तक झालावाड़ के दरबार झाला राजेंद्र सिंह तक यहां रावण दहन की यही परंपरा रही। लेकिन उसके बाद यहां भी पुतले बनाकर रावण दहन शुरू हुआ। रावण के कुनबे के पास ही तीन चबूतरे बनाए गए हैं। जहां अब हर साल रावण, मेघनाथ, कुंभकरण, के पुतले जलाए जाते हैं।
रावण का कुनबा
झालावाड़ के इतिहासविद ललित शर्मा नें बताया कि मेला मैदान पर 13 पुतले बने हुए हैं। रावण उनकी पत्नी मंदोदरी, मेघनाथ, कुंभकरण, रावण के मामा मारीच, और खर दूषण के पुतले बनाए गए हैं। इसके अलावा 4 सैनिक और दो हाथियों के पुतले भी बनाए गए हैं। ललित शर्मा ने बताया कि रावण दहन के समय रावण कुंभकरण और मेघनाद के पुत्रों को जलाने की परंपरा रही है। लेकिन यहां रावण के परिवार के अन्य सदस्य भी मौजूद है। ऐसा रावण दहन उस समय हिंदुस्तान में कहीं और नहीं होता होगा। सबसे बड़ी खास बात यह है कि रावण का भाई कुंभकरण यहां सोती हुई मुद्रा में है।इसके अलावा रावण की पत्नी मंदोदरी,उसके मामा मारीच और खर दूषण के भी पुतले हैं।