झालरापाटन में भले ही किसी भी राजनीतिक पार्टी ने अपने अधिकृत प्रत्याशी घोषित न किए हो लेकिन बावजूद इसके यहां न सिर्फ चुनावी चर्चाएं अपने चरम पर हैं बल्कि कुछ संभावित प्रत्याशियों ने खुद को पार्टी का उम्मीदवार मानकर चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया। कोई सोशल मीडिया के माध्यम से मतदाताओं को रिझा रहा है, तो किसी ने गांव-गांव ढ़ाणी ढ़ाणी जाकर वोट मांगने शुरू कर दिए,बहरहाल इन सब के बीच एक बात जो न सिर्फ राजनीतिक पंडितों को चकरघीन्नी किए हुए हैं बल्कि आम जन के बीच भी काफी चर्चाओं का विषय बनी हुई है आखिर 2003 से लगातार झालरापाटन से चार बार विधायक का चुनाव जीतने वाली और दो बार मुख्यमंत्री रहने वाली वसुंधरा राजे के नाम की घोषणा भाजपा की पहली सूची में क्यों नहीं हुई। इस मामले में जितने दिमाग उतने ही कयास और जितने मुंह उतनी ही बातें हो रही है,लेकिन राजनीतिक विश्लेषक स्पष्ट कर चुके हैं की पहली सूची में उन्हीं सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की गई है। जहां पार्टी दो से तीन चुनाव लगातार हारी है।अब लोगों को बीजेपी की दूसरी सूची का इंतजार है। लोगों को उम्मीद है की दूसरी सूची में तो वसुंधरा राजे का नाम निश्चित तौर पर आएगा ही दूसरी सूची का जितना इंतजार लोगों को है, उतना ही इंतजार कांग्रेस को भी है क्योंकि वसुंधरा राजे के नाम की घोषणा के बाद ही कांग्रेस झालरापाटन में अपनी रणनीति तय कर उम्मीदवार का चयन करेगी।
किसे उतारेगी कांग्रेस स्थानीय या बाहरी-
उधर कांग्रेस ने झालरापाटन में भले ही पिछले चार चुनाव में भाजपा से मुंह की खाई हो लेकिन बावजूद इसके झालरापाटन से कांग्रेस से चुनाव लड़ने वालों की होड़ जैसी इस बार देखने को मिल रही है वैसी पहले कभी नहीं देखने को मिली राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद से ही कांग्रेस में एक नया उत्साह देखने को मिल रहा है। यूं तो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए दो दर्जन नेताओं ने दावेदारी जताई है, लेकिन पीसीसी सदस्य शैलेंद्र यादव (कालू चाचा) वीरेंद्र सिंह झाला (नेता बना) रामलाल चौहान (पिड़ावा) और वरिष्ठ कांग्रेस नेता विष्णु प्रसाद पाटीदार की दावेदारी में दमखम नजर आ रहा है। इसके अलावा डीसीसी महामंत्री आमिर खान, पीसीसी सदस्य सिद्धि गौरी, और झालरापाटन नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष मुबारक मंसूरी भी इस चुनावी समर में कांग्रेस से टिकट लेकर ताल ठोकने की तैयारी में है। झालरापाटन में कांग्रेस वसुंधरा को टक्कर देने के लिए किसे चुनावी मैदान में उतरेगी यह कहना जल्दबाजी होगा झालरापाटन में प्रत्याशी की घोषणा संभवत कांग्रेस सबसे बाद वाली सूची में करेगी, क्योंकि इस बार कांग्रेस राजस्थान में लगातार दूसरी बार सरकार बनाकर एक बार वाली सरकार की परंपरा को तोड़ना चाहती है। ऐसे में कांग्रेस की कोशिश रहेगी की वसुंधरा राजे को झालरापाटन में ही उलझा कर रखें, क्योंकि अगर प्रचार अभियान में राजे को दूसरी सीटों पर चुनाव प्रचार करने का मौका मिल जाता है, तो इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को होगा और इस बार चुनाव इतना नजदीकी होगा कि दोनों ही पार्टियों के लिए एक-एक सीट बेशकीमती है। वसुंधरा राजे की घोषणा के बाद कांग्रेस की रणनीति स्थानीय व्यक्ति को उम्मीदवार बनाने की होगी या फिर किसी बाहरी व्यक्ति को कांग्रेस प्रत्याशी बनाएगी यह तो समय ही तय करेगा। लेकिन सामाजिक सरोकार के कामों के कारण शैलेंद्र यादव को टीकट देना कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है।
मोजावत जूटे प्रचार में नहीं मिल रहा समर्थन-
झालरापाटन विधानसभा सीट पर इस चुनाव में एक नाम की बेहद चर्चा है रायसिंह मोजावत वर्षों तक झालावाड़ में सरकारी अधिकारी रहने वाले मोजावत व उनकी तहसीलदार पत्नी पर एसीबी की कार्रवाई के बाद मौजावत सरकारी नौकरी से वीआरएस पहले अप्लाई कर झालरापाटन से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। अभी तक किसी भी पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार तो नहीं बनाया लेकिन उन्होंने क्षेत्र में जोर-जोर से प्रचार शुरू कर दिया है। वे रोजाना गांव गांव ढाणी ढाणी जाकर लोगों से वोट मांग रहे हैं। लेकिन उन्हें अपेक्षित समर्थन नहीं मिल रहा है। हालांकि वे गांव में छोटी-छोटी सभाएं कर रहे हैं। लेकिन कुछ खास लोग ही उनकी सभाओं में पहुंच रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोजावत दंपति पर भ्रष्टाचार की कार्रवाई के बाद ही मोजावत के चुनाव लड़ने और एक विशेष समुदाय के वोट काटकर वसुंधरा राजे को चुनाव में नुकसान पहुंचाने की चर्चाएं आम हो गई थी और झालरापाटन का आम मतदाता अब इस बात को समझ चुका है कि मोजावत का उद्देश्य न क्षेत्र का विकास है और न जनता की भलाई वे सिर्फ वसुंधरा राजे को चुनाव में नुकसान पहुंचाने के लिए ही चुनाव मैदान उतरे हैं। इसलिए काफी पैसा खर्च करने के बाद भी मोजावत का चुनाव लड़ना का चुनाव परिणाम पर कोई खास प्रभाव नहीं डाल पाएगा। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब किसी का चुनाव लड़ने का उद्देश्य अच्छा ना हो और जनता इस बात को समझ जाए तो उस उम्मीदवार को ना तो अपेक्षित समर्थन मिलता और नहीं लोग वोट देते हैं।