चातुर्मास प्रवचन माला 12

देश न्यूज

कोटा 12 जुलाई । मन बड़ा पापी सांवरिया रे… एक प्रसिद्ध भजन का मुखड़ाहै। मनुष्य के भाव जगत मे बदलते मन और आसक्ति की पृष्ठभूमि में अच्छे विचार भी राग-द्बेष की प्रवृत्ति में बदल जाते हैं। रामायण महाकाव्य के रचयिता संत तुलसीदास जी के उदाहरण दिए कि उनकी पत्नी के शब्दों से कैसे जीवन बदल गया। वहीं राजा मणिरथ का अपने छोटे भाई युगबाहु की पत्नी की सुन्दरता पर रीझ कर भाई का जीवन ही समाप्त करने पर उद्दत हो गया। मन के भाव बदलने की ताकत स्वयं मनुष्य में ही है। पांच इंद्रियों में मन भटकता रहता है।
कोटा के पार्श्व कुशलधाम दादाबाड़ी की धर्मसभा में साध्वी मंडल के साथ चातुर्मास कर मणिप्रभा श्री जी ने
प्रवचन में कहा कि इच्छा आकाश के समान है। हल्के विचार छोड़ने के लिए चिंतन करना चाहिए। साध्वी जी ने मन के बदलते भावों पर प्रवचन केंद्रित करते हुए बताया कि राजा मणिरथ के विचारों में ऐसी निम्नता आ गई कि वह अपने भाई की सुंदर पत्नी को अपनी बनाने के लिए भाई का जीवन समाप्त करने पर आमादा हो गए। किसी के प्रति दूषित भाव मन में आने से बरसों बरस का भाईचारा खत्म हो जाता है। अपनी जिंदगी खुद जांचो तो आपके मन में भी कहीं ना कहीं दूषित भाव मिल जाएंगे। सोचें कि राग द्वेष कहां से कहां ले जाता है?

धर्म पथ कैसे अंगीकार करें । मां के प्रति पुत्र के प्रेम और कर्तव्य को एक मां ने कैसे जांचा, इसका वृतांत सुनाया। कठोरता, तीखापन और व्यवहार में रूखापन व्यक्ति के मनोभाव को प्रकट कर देता है। अधिक कर्म बंधन अभिलाषा में होते हैं, प्राप्ति में नहीं। मंदिर में जाकर अच्छे भाव मांगों, परिग्रह में नहीं पड़ने और सद्बुद्धि देने की प्रार्थना करो। वृद्ध मां के धन में एक व्याख्याता किस प्रकार आसक्त होकर अशांत था। साध्वी जी के उपदेशों से उसके मनोभाव बदल गये और वह आनंद से जीवन बिताने लगा क्योंकि उसने अपनी अभिलाषा का त्याग कर दिया था। अभिलाषा क्या थी संपत्ति प्राप्त करना।कई उदाहरणों से समझाया कि शब्द,गंध और स्पर्श को लेकर मन निरंतर बदलता है और मोह मन मे तेरा मेरा करते हुए कैसे प्रवेश करता है। ऐसा कोई उदाहरण आपका भी मिल जाएगा। परिग्रह में ना पडना और इच्छाराम से मुक्ति सुख सागर समान है। जिसने अपने दृष्टिकोण अर्थात मन को सुसंस्कृत कर लिया तो समझो उसका जीवन बदल गया।

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