चातुर्मास प्रवचन माला 11

पात्रता बिना कुछ नहीं मिलता

कोटा 11 जुलाई । इच्छाओं का घेरा पराधीन बना देता है। आत्म प्रशंसा के भाव से भी बचना चाहिए। सद गुणी लोग जिंदगी के वैभव में भी शांत और सह्रदयी रहते हैं। आराधना की अनुकूलता उन्हें मिलती है। मन की मांग कभी पूरी नहीं होती। मन-माया में अनेकों भाव उत्पन्न होते रहते हैं। अप्रिय परिस्थितियों को पीने (सहने) का अभ्यास करते रहें। लालच मन का स्वभाव है। कोई धन पर रीझता है, कोई किसी की सुंदरता पर, कोई मिथ्या मान कषाय मे पड़े रहते हैं। सत्संग जीवात्मा के कल्याण का मार्ग बताता है।
जैन साध्वी मणिप्रभा श्री जी ने पार्श्व कुशल धाम दादाबाड़ी कोटा की धर्मसभा में अपने नित्य वचनों में यह उदगार व्यक्त किए। साध्वी जी के प्रवचनों में भगवान महावीर स्वामी के संदेशों पर मानव कल्याण निमित्त व्याख्यान दिए जा रहे है। वह बताती हैं की मनुष्यता के मार्ग पर पुनः कैसे लौट सकते हैं? अनुकूलता महान पुण्य का उदय होने से होती है। वैभव सम्पन्न जीवन जीने वाले कई ऐसे भी हैं जो मिथ्या वचनों से परहेज नहीं करते। ऐसे एक धनी व्यक्ति की भोजन थाली का उदाहरण देकर समझाया कि शारीरिक जिंदगी मीठी लगती है और ऐसे जन आत्मप्रवंचना में पड़े रहते हैं। जो महाराज का सम्मान भाव भी रखते और मिथ्या जगत में भी विचरण करते हैं।
जप, तप, भक्ति स्वाध्याय, दान पुण्य जितना करते हैं सब पुण्योदय का फल होता है। अभिमान जाता कब है इसका बार-बार चिंतन करना चाहिए। आत्मा को सम्यक ज्ञान दर्शन के लिए महापुरुषों के प्रवचन निरंतर सुनने चाहिए। इससे आत्मशुद्धि के भाव जागृत होते हैं। चंडाक सर्प का उल्लेख करते हुए कहा कि यह किस प्रकार भगवान महावीर स्वामी जी के उपदेश से वह क्षमाशील बन गया था। शारीरिक जिंदगी में बिना पात्रता
कुछ मिलना मुश्किल है।
धन को गुलाल की तरह उड़ाते हैं और जरूरतमंद को अंगूठा दिखा देते हैं, ऐसे भी प्राणी है। क्यों रे पापी पाप कब तक करना है ,पैसे की गुलामी कब तक सहना है। सारे पाप छूटते नहीं है, कुछ है जो छोड़ना पड़ता है।अब तक का जीवन बीत गया, बाकी का पता नहीं। बचे जीवन की आत्मा तो सुधार लो! रुचि और समय अनुकूलता अनुसार मन बदलने का प्रयत्न करते हैं उनको मेरा प्रणाम !

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