सातवे तीर्थन्कर श्री सुपार्श्वनाथ जी का जन्म वाराणसी नगरी के राजा प्रतिष्ठ्सेन की रानी प्रथ्वीसेना की रत्न्कुक्षी से ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी के दिन हुआ । देवो और मानवो ने महान महोत्सव रच कर प्रभु का जन्मोत्सव मनाया । युवावस्था मे सुपार्श्वनाथ जी का अनेक राजकन्याओ से पाणिग्रहण संस्कार संपन्न हुआ । पिता के प्रव्रज्या अन्गीकार कर लेने पर सुपार्श्वनाथ जी ने विदेह भाव से राज्य भार संभाला । उन्होने अनेको वर्षो तक प्रज्या का पुत्रवत पालन किया । भोगावली कर्म अशेष होने पर उन्होने पुत्र को राज्य मे स्थापित करके ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी के दिन दिक्षा धारण की ।
नौ मास की सन्यम पर्याय मे प्रभु ने चारो घनघाती कर्मो को नष्ट कर के कैवल्य प्राप्त किया । तीर्थ की स्थापना कर तीर्थकर पद पर आरुढ हुए । अपनी धर्म देशनाओ से प्रभु ने लाखो भव्य जीवो को मोक्ष का पथ दिखाया । प्रभु ने सुदीर्घ काल तक इस धरा को धर्माम्रत से सिन्चित करने के पश्चात फ़ाल्गुन क्रष्णा सप्तमी को सम्मेद शिखर पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया |
विदर्भ आदि पन्चानवे गणधर, तीन लाख साधु , चार लाख तीस हजार साध्विया, दो लाख सत्ता्वन हजार श्रावक एवम चार लाख तिरानवे हजार श्राविकाए भगवान के धर्म -परिवार का अन्ग थी |
चिन्ह का महत्व
स्वस्तिक – स्वस्तिक का प्रतीक वैदिक , बौद्ध एवं जैन सभी धर्मों में मांगलिक माना गया है | भारतीय संस्क्रति में स्वस्तिक को सत्यम शिवम सुन्दरम का प्रतीक माना गया है | स्वस्त्ति शब्द का अर्थ है – सु +अस्ति अर्थात कल्याण हो | इसकी रेखाएं ओंकार से मिलती हैं | इसकी रेखाएं एक -दूसरे को काटती हुई दो की चार प्रतीत होती हैं | इसका संकेत है जन्म -मरण की रेखाएं एक -दूसरे को काटकर चतुर्गति संसार का निर्माण करती हैं | किन्तु इसका यह यह भी अर्थ है- ज्ञान की रेखा से अज्ञान की रेखा कट जाए तो फ़िर चार गतियों से मुक्ति भी मिल जाती है | ज्ञान से अज्ञान को मिटाओ | स्वस्तिक के चारों कोने ज्ञान , दर्शन , चरित्र और तप रूपी मोक्षमार्ग के प्रतीक हैं | जैन साहित्य में अष्ट मंगल को शास्वत मंगल प्रतीकों में माना है | तीर्थंकर के समवसरण , चक्रवर्ती की सभाओं , विजय -यात्राओं में स्वस्तिक चिन्ह अंकित रहता है |
भ्रमर फागुन छट्ठ सुहावनो, परम
समवसर्न विषैं वृष भाखियो, हम
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा षष्ठीदि
असित फागुन सातय पावनो, सकल कर्
गिरि समेदथकी शिव जातु हैं,
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा सप्तमी
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड भोपाल 462026