मृत्यु के बाद मोक्ष के लिए परिजन अपनों की अस्थियों का विसर्जन तक गंगा में नहीं कर पा रहे हैं। लोग हालात सामान्य होने के इंतजार में अपने परिजनों की अस्थियों को मुक्तिधामों में स्थित लॉकर में ही रख रहे हैं। लेकिन अब तो वहां पर भी जगह नहीं बची है। स्थिति यह हो गई है कि अस्थियों को पीपों, बाल्टियों और डिब्बों में रखना पड़ रहा है ।
विधुत दाह गृह में रोज 8 से 10 दाग
किशोरपुरा श्मशान में काम देख रहे ओम प्रकाश कोली ने बताया कि 13 अप्रैल से शवों की संख्या बढ़ी है। यहां विधुत शव दाह गृह में रोज 8-10 शवों का दाह संस्कार किया जा रहा है। जबकि लकड़ियों पर भी दाग लगाए जा रहे। अब तो जगह कम पड़ने लगी है। पास ही में बच्चों के श्मशान में दाह संस्कार किया जाने लगा है।
पीपों में रखी अस्थियां
मुक्तिधाम के सभी लॉकर्स फुल हो चुके हैं। अस्थियां रखने की जगह नहीं बची है। पीपे, बाल्टी, डिब्बे मंगवाकर अस्थियां रखी जा रही है। किसी की अस्थियां अदल बदल ना हो इस कारण इन पर रखे लाल कपड़े पर मृतक का नाम लिखा जा रहा है। इसके अलावा शहर के अन्य मुक्तिधामों कंसुआ, नयापुरा, संजयनगर स्टेशन, बोरखेड़ा मुक्तिधाम तथा गुमानपुरा के एक मंदिर परिसर में लगभग 800 से भी अधिक अस्थियां मोक्ष के इंतजार में रखी हुई है ।
पहली बार देखा ऐसा मंजर
ओम प्रकाश ने बताया कि जीवन में पहली बार ऐसा मंजर देख रहा हु जब लोगों को दाह संस्कार के लिए भी इंतजार करना पड़ रहा है। रोज 60-70 शव आ रहे है। 13 अप्रैल से अभी तक 200 से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार हो चुका है। मृतकों की अस्थियां मोक्ष के इंतजार में लॉकर में रखी है।
अन्य क्रियाएं तक नहीं हो पा रही
कोरोना के कारण परिवार में क्रियाएं करने वाले तक नहीं मिल रहे हैं। कई केस ऐसे आए है जिनमें एक सदस्य की मृत्यु हो गई, परिवार में अन्य सदस्य कोरोना पॉजिटिव हैं, बाकी रिश्तेदार जैसे-तैसे अंतिम संस्कार तो करवा देते हैं, लेकिन फिर बाकी की क्रियाओं के लिए कोई तैयार नहीं होता है। तीसरे के दिन ही बारहवीं व तेरहवीं की क्रियाएं कर देते हैं। उसके बाद अस्थि कलश को मुक्तिधाम के लॉकर में रख देते हैं।