कोरोना जीवनभर के लिए बहरा भी कर सकता है। इसका संक्रमण सुनने की क्षमता को कम या पूरी तरह खत्म कर सकता है। ब्रिटेन में एक ऐसा मामला सामने आया है। यह दावा ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के रिसर्चर्स ने किया है।

रिसर्चर्स का कहना है कि संक्रमण के बाद स्टेरॉयड दवाएं दिए जाने के बाद इसका असर उल्टा हो सकता है। जो बहरेपन के रूप में दिख सकता है। हालांकि, मरीज की सुनने की क्षमता कैसे घटी यह पूरी तरह से साफ नहीं हो पाया है। कई बार फ्लू, हर्पीज जैसे वायरल इंफेक्शन के मामलों में ऐसा होता है।

कब, क्या और कैसे हुआ, 5 पॉइंट्स में समझें

  • बीएमजे जर्नल में पब्लिश केस रिपोर्ट के मुताबिक, जिस संक्रमित में बहरेपन का मामला मिला, वह अस्थमा का मरीज था और कोरोना के लक्षण दिखने पर हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।
  • एडमिट होने के 10 दिन बाद उसे आईसीयू में ट्रांसफर किया गया, यहां वह 30 दिन तक भर्ती रहा।
  • धीरे-धीरे मरीज में कॉम्प्लीकेशंस बढ़ने लगे। इसके बाद उसे एंटीवायरल ड्रग रेमडेसेविर, स्टेरॉयड्स दिए गए और ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया गया। इस ट्रीटमेंट के बाद मरीज को कुछ राहत मिली।
  • कुछ दिन बाद मरीज को दाहिने कान में घंटी बजने जैसी आवाज सुनाई देने लगी और अचानक इस कान से सुनाई देना बंद हो गया। एक हफ्ते बाद उसे आईसीयू से ट्रांसफर कर दिया गया।
  • मरीज की जांच करने वाले डॉक्टर्स का कहना है, इससे पहले कभी भी मरीज की सुनने की क्षमता पर असर नहीं पड़ा था। फिजिकली वह फिट था।

कान में न सूजन और न ही कोई ब्लॉकेज
रिसर्चर्स का कहना है, मरीज के कान की जांच की गई तो सामने आया कि वहां न तो कोई ब्लॉकेज था और न ही सूजन थी। इस घटना के बाद मरीज के कई और टेस्ट किए गए। इनमें फ्लू, रुमेटॉयड आर्थराइटिस, एचआईवी की जांच शामिल थी। रिसर्च में सामने आया कि उसके बहरेपन की वजह कोरोना का संक्रमण था।

सुनने की क्षमता घटना और टिनिटस का लक्षण भी अलर्ट करने वाला
रिसर्चर्स के मुताबिक, सुनने की क्षमता का घटना और टिनिटस (कान में आवाज गूंजना) का लक्षण भी कोरोना और फ्लू के मरीजों में देखा गया है। लेकिन, अचानक ऐसा होने जैसा मामला अब तक सामने नहीं आया है। वैज्ञानिकों को अप्रैल में कोरोना के कुछ मरीजों में ऐसे मामले दिखे थे।

वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना कान के मिडिल वाले हिस्से को भी प्रभावित कर सकता है। यह वायरस शरीर में ऐसे रसायन को बढ़ाता है जो सुनने की क्षमता से जुड़े हैं। रिसर्चर्स की सलाह है कि जब भी डॉक्टर्स आईसीयू में कोरोना के मरीज से बात करें तो उनकी सुनने की क्षमता के बारे में जरूर पूछें। ऐसा होने पर उन्हें इमरजेंसी ट्रीटमेंट दें।

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