जन्माष्टमी के बाद कान्हा की छठी भी धूमधाम से मनाई जाती है। हिन्दू धर्म में बच्चे के जन्म के छह दिन बाद जिस तरह उसकी छठी मनाई जाती है और नामकरण किया जाता है। इसी तरह कान्हा के जन्म उत्सव जन्माष्टमी के छह दिन बाद ठाकुर जी की छठी का आयोजन किया जाता है। इस दिन भक्तिभाव से कान्हा की पूजा करें। उनका नामकरण करें। कान्हा की छठी के दिन घर में कढ़ी चावल का प्रसाद बनाने की परंपरा है।

कान्हा की छठी पर प्रात: काल ठाकुर जी को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद शंख से गंगाजल द्वारा भगवान को स्नान कराएं। कान्हा को मोर पंख का मुकुट पहनाएं। स्नान कराने के बाद भगवान को पीले रंग के वस्त्र पहनाएं और उनका पूरा शृंगार करें। शृंगार के बाद कान्हा को मिश्री और माखन का भोग लगाएं। कान्हा को भोग लगाने के बाद उनका नामकरण करें। इस दिन अपने घर में कढ़ी-चावल का प्रसाद अवश्य बनाएं। छठी महोत्सव पर ठाकुर जी को अपने घर की चाबी सौंप दें और उनसे प्रार्थना करें कि अब आप ही इस घर के स्वामी हैं। घर पर आपका स्नेह और कृपा सदैव बनी रहे। छठी पर कान्हा का कीर्तन करें। ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: का जाप करते रहें। छठी के दिन विधि विधान से पूजा पाठ करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

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