हर किसी को गुस्सा आता है और यह बेहद स्वाभाविक है। लेकिन, अगर आप उनमें से हैं जो अपने गुस्से का इजहार नहीं करते तो सर्तक हो जाइए। अपने गुस्से को व्यक्त करने में न सिर्फ आपकी मानसिक भलाई है बल्कि मस्तिष्काघात (ब्रेन स्ट्रोक)को रोकने में भी यह अहम भूमिका निभाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग के शोधकर्ताओं की टीम ने पाया है कि गुस्से को दबाकर रखने से महिलाओं के कारोटिड धमनियों में गंदगी (प्लाक)जमने लगती है जिससे मस्तिष्काघात का खतरा बढ़ जाता है।

दिमाग को खून सप्लाई करती हैं धमनियां-
यह धमनियों दिमाग तक होने वाली खून की सप्लाई को नियंत्रित करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इन धमनियों में सिकुड़न आने से मस्तिष्काघात का खतरा जानलेवा हो सकता है। पूर्व के शोधों के अनुसार लंबे समय तक तनाव में रहने से दिमाग में सूजन पैदा होती है जिससे मस्तिष्काघात, दिल के दौरे, और सीने में दर्द के खतरे बढ़ जाते हैं।

भावनात्मक अभिव्यक्ति और दिमागी स्वास्थ्य में संबंध-
प्रमुख शोधकर्ता कारेन जाकुबोवस्की ने कहा, हमारे शोध से पता चलता है कि महिलाओं में सामाजिक-भावनात्मक अभिव्यक्ति और दिमाग के स्वास्थ्य के बीच संबंध पाया गया है। इस तरह के शोध महत्वूपर्ण होते हैं क्योंकि यह दर्शाता है कि कैसे किसी महिला का भावनात्मक स्वभाव उसके शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। इन परिणामों से प्रोत्साहित होकर स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को अपने रोगियों के सामाजिक-भावनात्मक कारकों को ध्यान में रखते हुए एक निवारक देखभाल योजना की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए।

मस्तिष्काघात अमेरिका में मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। स्ट्रोक सेंटर के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में हर साल मस्तिष्काघात से 140,000 लोगों की मौत हो जाती है। यूके में मस्तिष्काघात चौथा सबसे बड़ा मौता का कारण है। यहां साल भर में करीब 100,000 लोगों की मौत मस्तिष्काघात के कारण हो जाती है।

एथेरोस्क्लेरोसिस ब्रेन स्ट्रोक का कारण-
एथेरोस्क्लेरोसिस ब्रेन स्ट्रोक का एक प्रमुख कारण है। यदि पट्टिका फट जाती है, तो यह एक रक्त का थक्का बना सकता है जो आगे मस्तिष्क तक ऑक्सीजन युक्त रक्त के प्रवाह को अवरुद्ध करता है। महिलाओं में पुरुषों की तुलना में स्ट्रोक का खतरा अधिक होता है और उनके ठीक होने की संभावना कम होती है। यह मासिक धर्म चक्र, हार्मोनल गर्भ निरोधकों और गर्भावस्था की जटिलताओं से जुड़ा हुआ है।

शोधकर्ता इस बात की जानने के इच्छुक थे कि गुस्से को स्वयं दबा लेने से महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है। उन्होंने लिखा, कई लोगों ने तर्क से बचने या किसी रिश्ते के टूटने से बचाने के प्रयास में अपने विचारों और भावनाओं को अंदर ही छुपा या दबा लेते हैं। गुस्से को दबा लेने से महिलाएं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट आती है।

ऐसे किया गया अध्ययन-
इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने 40 से 60 साल के उम्र की 304 महिलाओं पर शोध किया। यह सभी महिलाएं धूम्रपान नहीं करती थीं। इन महिलाओं से पूछा गया कि यह कितनी जल्दी-जल्दी अपने गुस्से को व्यक्त करती थीं। अल्ट्रासाउंड स्कैन की मदद से उनके कारोटिड धमनियों ने जमा गदंगी के स्तर को आंका गया।

इन परिणामों से पता चला कि जो महिलाएं अपने गुस्से को दबा रही थीं उनमें एथेरोस्क्लेरोसिस का खतरा ज्यादा था। पूर्व के शोधों में कहा गया है कि दिमाग के तनाव का स्तर बढ़ने से दिमाग बोन मैरो को संकेत भेजता है कि वो और सफेद रक्त कोशिकाएं बनाए। यह सफेद कोशिकाएं धमनियों में सूजन पैदा कर सकती हैं।

गुस्से का इंसानी शरीर पर असर-
– शरीर में एड्रिनालिन और नोराड्रिनलिन हॉर्मोंस का स्तर बढ़ जाता है
– उच्च रक्तचाप, सीने में दर्द, तेज सिर दर्द, माइग्रेन, एसिडिटी जैसी कई शारीरिक बीमारियां हो सकती हैं।
– जो लोग जल्दी-जल्दी और छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाते हैं, उन्हें स्ट्रोक, किडनी की बीमारियां और मोटापा होने का जोखिम होता है।
– ज्यादा पसीना आना, अल्सर और अपच जैसी शिकायतें भी गुस्से की वजह से हो सकती हैं।
– ज्यादा गुस्से की वजह से दिल के रक्त को पंप करने की क्षमता में कमी आती है और इसकी वजह से दिल की मांसपेशियों को क्षति पहुंचती है।
– लगातार गुस्से से रैशेज, मुंहासे जैसी स्किन से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं।

Leave a Reply