वस्तु का मूल्य नहीं है, मूल्य उसके उपयोग का है। उपयोग पर ही आधरित है कि आपने उस वस्तु को कितना मूल्य दिया… उसका कितना महत्व स्वीकार किया।
पत्थर वही है, उससे पुल का निर्माण भी किया जा सकता है। और दीवार भी बनाई जा सकती है। पुल दो किनारों को जोडने का कार्य करता है। तो दीवार एक को दो में विभक्त करने का!
पाषाण खण्ड वही था। उसका उपयोग कैसे किया, इसी में उसके महत्व का बोध होता है।
पैसा वही है, उससे व्यक्ति मंदिर में चढाने के लिये अक्षत भी खरीद सकता है।
और उससे शराब भी खरीदी जा सकती है। एक में सदुपयोग है… एक में दुरूपयोग!
वही मन है, जिससे हम मोक्ष मार्ग की आराध्ना कर सकते हैं।
वही मन संसार बढाने का काम भी कर सकता है।
शब्द वही है, उन्हीं शब्दों से किसी के दिल के घाव पर मरहम लगाया जा सकता है। तो उन्हीं शब्दों से घाव बनाया भी जा सकता है।
मूल्य वस्तु का नहीं, उसके उपयोग का है।
चिंतन हमें करना है, हम ‘प्राप्त’ का कैसा उपयोग कर रहे हैं।
जीवन मिला है। जीवन के उपयोग के संदर्भ में हमारा क्या चिंतन है!
जो किसी और जीवन में भी पाया जा सकता है, वह महत्वपूर्ण नहीं है। पर जो और किसी जीवन में पाया नहीं जा सकता… केवल इसी जीवन में वह संभव है, वह प्राप्ति ही महत्वपूर्ण है।
हम किस ‘प्राप्ति’ के लिये अपनी सांसों को दांव पर लगा रहे हैं। उस प्राप्ति के लिये जो हर जन्म में उपलब्ध् है या उस ‘प्राप्ति’ के लिये जो केवल और केवल इसी जन्म में संभव है।
गहराई से पूर्ण यह विचार हमारे जीवन को दिशा देगा… लक्ष्य का निर्धरण करेगा।

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