उदयपुर। उदयपुर की स्थानीय अदालत ने 55 साल पुराने 57 किलो 863 ग्राम सोने के मामले में बुधवार को केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग के पक्ष में फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने 45 साल पूर्व निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें इस सोने के वारिसों को लेकर स्थिति साफ नहीं होने पर इसे केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग को सौंपे जाने के आदेश दिए गए थे। हालांकि, मामले में दूसरा पक्ष सोने के हक को लेकर पहले से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुका है।

मामला चित्तौडग़ढ़ जिले के आंजना परिवार से जुड़ा है। आंजना परिवार के एडवोकेट भंवरसिंह देवड़ा बताते हैं कि केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग को उक्त सोने का हक मिला है, लेकिन इससे आंजना परिवार का हक खत्म नहीं हो जाता। आंजना परिवार पहले से ही केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग नई दिल्ली के समक्ष इस सोने के हक को लेकर लड़ाई जारी रखे हुए है। बुधवार को सुनाए गए फैसले के मुताबिक केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग के चित्तौडग़ढ़ कार्यालय को यह सोना मिलना है। अदालत के निर्देश पर यह सोना पांच दशक से उदयपुर की ट्रैजरी में सुरक्षित रखा हुआ है।
एडवोकेट भंवरसिंह बताते हैं कि छोटी सादड़ी तहसील के गोमाना गांव के सर्राफा व्यापारी गणपत लाल पुत्र भैरूलाल आंजना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 16 दिसम्बर 1965 को प्रस्तावित छोटी सादड़ी की यात्रा के दौरान उन्हें सोने से तोलने की घोषणा की थी। इसके लिए आंजना परिवार ने उनके वजन के बराबर 57 किलो 863 ग्राम सोना जिला कलेक्टर कार्यालय में सुरक्षित रखवाया था। वह छोटी सादड़ी आ पाते उससे पहले ही ताशकंद में उनका निधन हो गया। इसके बाद आंजना परिवार ने जिला कलेक्ट्रेट में प्रार्थना पेश कर वहां जमा कराया सोना वापस लौटाने की मांग की, लेकिन राजनीतिक कारण और कानूनी दांवपेच की वजह से यह सोना आंजना परिवार को नहीं मिल पाया। गणपतलाल आंजना की मौत के बाद उनके बेटे गोवर्धन लाल आंजना और उनके परिवार के सदस्य पिछले 55 साल से इस सोने के लिए हक के लिए लड़ाई जारी रखे हुए हैं।

Leave a Reply