प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर की आधारशिला रखेंगे और 492 साल पुराना सपना साकार होने की और बढ़ेगा, लेकिन दुनिया में कई ऐसी जगह है जहां धार्मिक स्थल को लेकर चल रहे विवाद के खत्म होने का इंतजार है। कहीं दो देशों के बीच में विवाद है तो कहीं दो संप्रदायों के बीच में। विश्व के कुछ ऐसे ही धार्मिक स्थलों पर डालते हैं नजर ….
येरुशलम : पश्चिमी दीवार
येरुशलम में टेम्पल माउंट के पास स्थित यह दीवार ऐतिहासिक रूप से एक प्राचीन मंदिर का हिस्सा है। यह हजारों वर्षों से धार्मिक तनाव के शीर्ष पर है। यह यहूदी धर्म के लिए पूजा का स्थान है। 1967 में छह दिवसीय युद्ध में इजरायल ने इस पर नियंत्रण हासिल कर लिया था। अल-अक्सा मस्जिद (सुन्नी मुसलमानों के लिए तीसरा सबसे पवित्र मंदिर) के बगल में इसके स्थान होने से यहां संघर्ष होते रहते हैं। यहूदियों का विश्वास है यही वो स्थान है जहां से विश्व का निर्माण हुआ और यहीं पर पैगंबर इब्राहिम ने बेटे इश्हाक की बलि देने की तैयारी की थी।
कंबोडिया : प्रीह विहेयर
कभी-कभी किसी धार्मिक स्थल पर होने वाले संघर्ष को अन्य मुद्दों से भी जोड़ा जा सकता है। कंबोडिया-थाईलैंड के बीच प्रीह विहेयर मंदिर विवाद इसका उदाहरण है। 11 वीं शताब्दी में यह हिंदू मंदिर था। यहां भगवान शिव की पूजा होती थी, पर 13 वीं शताब्दी में यहां पूजा बंद हो गई। मंदिर पर बौद्धों ने कब्जा कर लिया। अब दोनों देश मंदिर के स्वामित्व का दावा करते हैं। 2008 में एक अंतरराष्ट्रीय अदालत ने स्वामित्व पर कंबोडिया का पक्ष लिया था। इसके बाद से दोनों पक्ष मंदिर को लेकर सैन्य संघर्ष में लगे हुए हैं। यह यूनेस्को विरासत स्थल है।
जापान : यासुकुनी
यासुकुनी 1869 में टोक्यो में निर्मित शिन्तो तीर्थ स्थल है। इसे शोगुन युद्धों में शहीद सैनिकों की आत्मा को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया गया था। यहां मृतकों के नाम धार्मिक स्थलों की किताबों में अंकित हैं। यहां चीन में 1937 के नानजिंग नरसंहार की अध्यक्षता करने वाले सैन्य कमांडर व पर्ल हार्बर पर हमले का आदेश देने वाले प्रधानमंत्री की कब्र है। 1980 के दशक तक किसी भी जापानी पीएम ने इस धर्मस्थल का दौरा नहीं किया था। क्योंकि ऐसा करने से चीन-दक्षिण कोरिया से उनके संबंध बिगड़ जाते।
ल्हासा (तिब्बत) : पोटाला पैलेस
पोटाला पैलेस ल्हासा तिब्बत में स्थित है। इसे बौद्ध धर्म के पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है व धार्मिक नेता दलाई लामा कभी यहां रहा करते थे। 1959 में जब चीन ने तिब्बत पर हमला किया तो दलाई लामा को यहां से जान बचाकर भागना पड़ा। फिर चीन ने ल्हासा में धन का निवेश किया और इसे एक संग्रहालय में बदल दिया। चीनी सरकार ने इस पवित्र तीर्थस्थल को पर्यटन स्थल में बदल दिया। पोटाला पैलेस तिब्बती बौद्ध धर्म व चीनी सरकार के बीच जारी संघर्ष का प्रतीक है। 1994 में पोटाला महल विश्व सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया।